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बरसात से पहले तैयारी में जुटे हैं ग्रामीण खपरैल वाले घरों में चल रही मरम्मत, मानसून से पहले लोग अपने आशियाना संवारने में जुट गए हैं

शेखर बैसवाड़े (नेवसा) बेलतरा क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों में मानसून से पहले लोग अपने अपने आशियाना संवारने में जुट गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बांस-बल्ली बदलने के साथ ही छप्परों की मरम्मत कर रहे हैं। इस वर्ष मजूदरों की कमी के चलते मरम्मत का कार्य प्रभावित हो रहा है।
मानसून को लेकर अब आशियाना संवारने की चिंता लोगों को सताने लगी है। ग्रामीण क्षेत्र में इन दिनों में मौसम बार-बार बदल रहे हैं। बारिश से बचने शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में मकानों की छतें सुधारने मकान मालिक जुट गए हैं। दो तीन दिन के अंतराल में हो रही बारिश के साथ ही लोग मकानों की मरम्मत, छप्पर बदलने तथा झुग्गी झोपड़ी को प्लास्टिक और टिनों से ढंकने की जुगत में लग गए हैं।

मजदूरों का टोटा

ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक खेती- किसानी की तैयारी में जुट गए हैं। ऐसे में सुधार के लिये मजदूरों का टोटा हो गया है। इसके अलावा जो मजदूर काम पर आ रहे हैं । बारिश का सीजन नजदीक होने के चलते लोग भी जल्द से जल्द घरों की मरम्मत कराना चाह रहे हैं। ऐसे मे ही घर के मालिक ही अपना आशियाना संवारने में जूट गये हैं। इधर पूरी तरह बारिश होने के बाद भी में ईंट बनाने का काम बंद हो जाएगा।

विलुप्त हो रही खपरैल

आज के बदले दौर में खपरैल का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है। पूर्व में शहर सहित ग्रामीण अंचलों में घरों की पहचान खपरैल की महत्ता कम हो गई है। वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में तो गिने-चुने ही मकान होंगे, जहां खपरैल की छत हो। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब लोग खपरैल की जगह पक्के मकान बना रहे है। एक समय था जब बारिश का सीजन आते ही खपरैल बनाने वालों के पास सांस लेने की फुर्सत नहीं होती थी लेकिन आज स्थिति यह है कि खपरैल की मांग लगभग नहीं के बराबर रह गई है। ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। वहीं कई खपरैल बनाने वाले जो बरसों से यही काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर घरों की शान समझे जाने वाले खपरैल में अब अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है।

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