
ठा. प्रेम सोमवंशी (कोटा) शासकीय निरंजन केशरवानी कालेज कोटा में साधना और सौभाग्य का पर्व बसंत पंचमी मनाया गया. इस अवसर पर विद्या की देवी मां सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलित कर पूजा अर्चना की गयी. प्राचार्य प्रो. बी. एल. काशी ने जीवन में विद्या के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ज्ञान, संगीत, कला और आध्यात्मिकता की देवी माँ सरस्वती के अवतरण दिवस माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है. बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है. सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति वसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है।

वरिष्ठ प्राध्यापक ए. के. पाण्डेय ने बताया कि बसंत ऋतुओं का राजा माना जाता है. यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन है. इस अवसर पर प्रकृति के सौंदर्य में अनुपम छटा का दर्शन होता है. पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत में उनमें नयी कोपलें आने लगती हैं. गणित विभाग के प्रो. वाई. के. उपाध्याय ने बताया कि शब्द के माधुर्य और रस से युक्त होने के कारण उनका नाम सरस्वती पड़ा. मां सरस्वती को शारदा, विद्या, वीणापाणि, वागेश्वरी आदि नामों से जाना जाता है. उन्होंने विद्यार्थियों से वीणावादिनी मां सरस्वती के समान और संगीत में सिद्धहस्थ होने और ललित कला को संजोकर रखने की बात कही. राजनीतिशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जे. के. द्विवेदी ने विद्यार्थियों से अपनी शिक्षा एवं ज्ञान को रचनात्मक कार्यां में लगाये जाने का आह्वान किया. वाणिज्य विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. नीलम त्रिवेदी ने विद्यार्थियों से प्रकृति की भांति नूतनता धारण करने और विकास के लिये सतत प्रयास करने की बात कही. कार्यक्रम अधिकारी शितेष जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि बताया कि राष्ट्रीय सेवा योजना और महाविद्यालय परिवार विभिन्न बौद्धिक कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील है. विद्या का धन सभी धनों से बड़ा होता है तथा इससे आनंद, उल्लास और नई उमंग का संचार होता है. बसंत पंचमी के इस कार्यक्रम के अवसर पर महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, कर्मचारी एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक उपस्थित रहे.
