
शेखर बैसवाड़े (नेवसा) गणेश चतुर्थी की छुट्टी के यह अवसर भुनाने के लिए हजारो लोग मंलगवार को खूंटाघाट बांध में उमड़ पड़े। खूबसूरत नजारा देखने के लिए पहुंची भीड़ एक जगह पर जमा हुई तो बांध के रास्ते पर चलने की जगह नहीं बची। खूंटाघाट की पहाड़ी पर इस दिन मेला भी लगा। नगर के साथ आसपास ग्रामीण अंचल से हजारों की संख्या में लोगों ने पहुंच कर खूब पिकनिक मनाई और सैर-सपाटा किया।

यहां पर निसंदेह बांध जब लबालब भरता है । वही जब ओवरफ्लो गिरता है । उस समय का दृश्य अनुपम होता है । इस मेला की विशेषता गांव गांव से महिलाएं अपने बच्चों को साथ लेकर यहां घूमने आती हैं और तीजा उपवास के बाद वह अपने साथ में ठेठरी खुरमी चौसेला जो घर में बनाए रहते हैं । उसे लेकर वह बांध किनारे बड़े मजे से नयनाभिराम खुटाघाट को निहारते खाते हैं । इसे कोई व्यक्ति समुदाय द्वारा मेला नहीं लगाया जाता । स्व स्फूर्त यह मेला लगता है । जिसमें इतनी भीड़ के बावजूद यहां भगदड़ कभी नहीं होता है जिसमें ग्रामीण महिलाओं बच्चों की संख्या ज्यादत्तर होती है । यह छोटी नहर से लेकर बड़ी नहर तक फैली हुई । विशाल जनसमूह दिखाई देती है । गणेश चतुर्थी पर जहां हजारो की संख्या में लोग पहुंचकर इस मेले आनंद ले रहे हैं जहां पर छोटे-छोटे होटल ,ठेला, गुपचुप, मनिहारी के साथ कई खिलौने की दुकानें लगी हुई है । जहां पर बच्चे बड़े खरीदारी भी करते हैं ।

खाना-पीना, मौज-मस्ती और आराम
बांध के किनारे पेड़ों की छांव में युवा, किशोर व कई परिवार ठंडी हवाओं के बीच आराम करते रहे। हंडियों में बांध से निकाली गई ताजी मछलियां पकाई जाती रहीं। मछली-भात का दौर शाम तक चला। खोमचेवालों को भी लंबे समय बाद ग्राहकी से राहत मिली। इधर, कुछ किशोर खुटाघाट डेम के गहरे पानी में गोते लगाने का मजा उठाने में मशगूल रहे।

खूंटाघाट में है यह सब
रतनपुर, बिलासपुर सहित जिले के लोगों के लिए खूंटाघाट बांध पिकनिक स्पॉट है। हरी-भरी पहाडिय़ों से भरपूर इस खूबसूरत जगह पर मीलों तक पहाड़ों से घिरे बांध में पानी ही नजर आता है। बीच के टापू तक बोट के सहारे पहुंचा जा सकता है। बांध में 1000 से अधिक मगर मच्छ हैं। दो किनारों पर वृंदावन गार्डन व वन विभाग की रोपणी है। पहाडिय़ों के ऊपर पाठ बाबा का मंदिर और दो रेस्ट हाउस हैं।
जल्द आसान होगा पहुंचना
मेलनाडीह-रतनपुर मार्ग से सीधे बांध तक पहुंचने के लिए नहर की सर्विस रोड बनाई गई है। नहर के दोनों ओर 3 करोड़ रुपए से 900-900 मीटर कांक्रीट सड़क बनी हुई है। जल संसाधन विभाग का कहना है कि यह बांध अंग्रेजों के शासनकाल में 1921 में बनना शुरू हुआ और 1930 में पूरा हुआ । भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने रतनपुर थाने में आवेदन भी दिया है ।